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स॒मत्स्व॒ग्निमव॑से वाज॒यन्तो॑ हवामहे । वाजे॑षु चि॒त्ररा॑धसम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samatsv agnim avase vājayanto havāmahe | vājeṣu citrarādhasam ||

पद पाठ

स॒मत्ऽसु॑ । अ॒ग्निम् । अव॑से । वा॒ज॒ऽयन्तः॑ । ह॒वा॒म॒हे॒ । वाजे॑षु । चि॒त्रऽरा॑धसम् ॥ ८.११.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:11» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:36» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

ईश्वर की स्तुति।

पदार्थान्वयभाषाः - जब-२ हम (वाजयन्तः) विज्ञान और बल की कामना करते हैं, तब-२ (वाजेषु) विज्ञान बल के लिये (चित्रराधसम्) अद्भुत शक्तिसम्पन्न (अग्निम्) परमात्मा का ही ध्यान करते हैं (समत्सु) और सम्यक् आनन्दप्रद अपने-२ हृदय में और संकटों में (अवसे) रक्षा करने के लिये उसी को (हवामहे) बुलाते हैं और उसी की स्तुति करते हैं। हे मनुष्यों ! तुम भी वैसा ही करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - वही बलदा और विज्ञानदाता है, तदर्थ वही पूज्य है, यह जानना चाहिये ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजेषु) संग्राम में (चित्रराधसम्) विचित्र सामग्रीवाले (अग्निम्) परमात्मा को (अवसे) रक्षा के लिये (वाजयन्तः) बल चाहनेवाले हम लोग (समत्सु) संग्रामों में (हवामहे) आह्वान करते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे परमात्मन् ! आपको विचित्र सामग्रीवाला होने से सब मनुष्य आपसे अपनी रक्षा की याचना करते और योद्धा लोग संग्रामों में आपसे ही विजय की प्रार्थना करते हैं ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

ईश्वरस्तुतिः।

पदार्थान्वयभाषाः - यदा-२ वयं वाजयन्तः=बलविज्ञानेच्छवो भवामः। तदा-२ वाजेषु=बलविज्ञानार्थम्। चित्रराधसम्=अद्भुतशक्तिसम्पन्नमग्निमेव। ध्यायामः। पुनः। समत्सु=स्वस्वहृदयेषु संकटेषु च। हवामहे। आह्वयामः स्तुमश्च ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजेषु) संग्रामेषु (चित्रराधसम्) विचित्रधनम् (अग्निम्) परमात्मानम् (अवसे) रक्षायै (वाजयन्तः) बलमिच्छन्तो वयम् (समत्सु) संग्रामेषु (हवामहे) आह्वयामः ॥९॥